उदास है तो बहुत ख़ुदाया
कोई न तुझ को सुनाने आया
वो सर जो तेरे उजाड़ दिल में
चराग़ बन कर चमक रही है
कोई न तुझ को दिखाने आया
अजीब हुस्न मुहीब जैसी
ख़लिश जो दिल में खटक रही है
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कल मैं ने उस को देखा तो देखा नहीं गया
वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में 'मुनीर'
सारे मंज़र एक जैसे सारी बातें एक सी
उन से नयन मिला के देखो
सफ़र में है जो अज़ल से ये वो बला ही न हो
इम्तिहाँ हम ने दिए इस दार-ए-फ़ानी में बहुत
अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
इक आलम-ए-हिज्राँ ही अब हम को पसंद आया
ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ
जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल
तूफ़ानी रात में इंतिज़ार
तुझ से बिछड़ कर क्या हूँ मैं अब बाहर आ कर देख