इम्तिहाँ हम ने दिए इस दार-ए-फ़ानी में बहुत
रंज खींचे हम ने अपनी ला-मकानी में बहुत
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(354) Peoples Rate This
मौत
अब किसी में अगले वक़्तों की वफ़ा बाक़ी नहीं
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
वहम ये तुझ को अजब है ऐ जमाल-ए-कम-नुमा
ये सफ़र मालूम का मा'लूम तक है ऐ 'मुनीर'
ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगाँ की याद
कितने यार हैं फिर भी 'मुनीर' इस आबादी में अकेला है
बड़ी मुश्किल से ये जाना कि हिज्र-ए-यार में रहना
वो खड़ा है एक बाब-ए-इल्म की दहलीज़ पर
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने
शब-ए-विसाल में दूरी का ख़्वाब क्यूँ आया