उस के रेशमीं कपड़े हैं या तेज़ हवा का ज़ोर
छन-छन करती पाज़ेबें हैं या पत्तों का शोर
आँखें नींद से बोझल हैं पर दिल भी है बेचैन
इसी तरह से कट जाएगी काजल जैसी रैन
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नील-ए-फ़लक के इस्म में नक़्श-ए-असीर के सबब
ख़्वाहिशें हैं घर से बाहर दूर जाने की बहुत
इक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गया
जादूगर
मकान-ए-ज़र लब-ए-गोया हद-ए-सिपेह्र-ओ-ज़मीं
मकाँ में क़ैद-ए-सदा की दहशत
हँसी छुपा भी गया और नज़र मिला भी गया
नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
किसी अकेली शाम की चुप में
खड़ा हूँ ज़ेर-ए-फ़लक गुम्बद-ए-सदा में 'मुनीर'
'मुनीर' अच्छा नहीं लगता ये तेरा
वक़्त से कहियो ज़रा कम कम चले