नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(406) Peoples Rate This
ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगाँ की याद
चाहता हूँ मैं 'मुनीर' इस उम्र के अंजाम पर
दश्त-ए-बाराँ की हवा से फिर हरा सा हो गया
तिलिस्मात
देखे हुए से लगते हैं रस्ते मकाँ मकीं
बे-हक़ीक़त दूरियों की दास्ताँ होती गई
ज़मीं के गिर्द भी पानी ज़मीं की तह में भी
ख़याल-ए-यकता में ख़्वाब इतने
एक लड़की
शायद कोई देखने वाला हो जाए हैरान
मैं
जो मुझे भुला देंगे मैं उन्हें भुला दूँगा