चाहता हूँ मैं 'मुनीर' इस उम्र के अंजाम पर
एक ऐसी ज़िंदगी जो इस तरह मुश्किल न हो
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(469) Peoples Rate This
कल्पना
ऐसा सफ़र है जिस की कोई इंतिहा नहीं
इक आलम-ए-हिज्राँ ही अब हम को पसंद आया
इशारे
बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना
रात इतनी जा चुकी है और सोना है अभी
चाँद चढ़ता देखना बेहद समुंदर पर 'मुनीर'
ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक
जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल
ज़वाल-ए-अस्र है कूफ़े में और गदागर हैं
सहन को चमका गई बेलों को गीला कर गई
दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़