ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक
मैं ख़्वाब में तो हूँ लेकिन ख़याल भी है मुझे
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पी ली तो कुछ पता न चला वो सुरूर था
दिन भर जो सूरज के डर से गलियों में छुप रहते हैं
लाई है अब उड़ा के गए मौसमों की बास
डर के किसी से छुप जाता है जैसे साँप ख़ज़ाने में
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
मिलती नहीं पनाह हमें जिस ज़मीन पर
मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बाद
उस सम्त मुझ को यार ने जाने नहीं दिया
क़बा-ए-ज़र्द पहन कर वो बज़्म में आया
रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं
जो देखे थे जादू तिरे हात के
जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए-आदम को सज़ा