जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल
शहर में हैं वो सूरतें बाक़ी
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नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया
दश्त-ए-बाराँ की हवा से फिर हरा सा हो गया
मोहब्बत अब नहीं होगी ये कुछ दिन ब'अद में होगी
चाहता हूँ मैं 'मुनीर' इस उम्र के अंजाम पर
अपने शहर के लिए दुआ
'मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है
एक लड़की
रौशनी दर रौशनी है उस तरफ़
मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
उठा तू जा भी चुका था अजीब मेहमाँ था
अभी मुझे इक दश्त-ए-सदा की वीरानी से गुज़रना है