वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया
रेशमी मल्बूस की ख़ुश्बू से जादू कर गया
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कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए
शहर पर्बत बहर-ओ-बर को छोड़ता जाता हूँ मैं
सारे मंज़र एक जैसे सारी बातें एक सी
कितने यार हैं फिर भी 'मुनीर' इस आबादी में अकेला है
इक और दरिया का सामना था 'मुनीर' मुझ को
बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना
जो मुझे भुला देंगे मैं उन्हें भुला दूँगा
शब-ख़ूँ
ख़ूब-सूरत ज़िंदगी को हम ने कैसे गुज़ारा
नशेब-ए-वहम फ़राज़-ए-गुरेज़-पा के लिए
मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बाद
ज़मीं के गिर्द भी पानी ज़मीं की तह में भी