मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में
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इम्तिहाँ हम ने दिए इस दार-ए-फ़ानी में बहुत
ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
इन लोगों से ख़्वाबों में मिलना ही अच्छा रहता है
मिरे पास ऐसा तिलिस्म है जो कई ज़मानों का इस्म है
जब भी घर की छत पर जाएँ नाज़ दिखाने आ जाते हैं
रात की अज़िय्यत
वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया
मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये
उन से नयन मिला के देखो
कोई दाग़ है मिरे नाम पर
इक मसाफ़त पाँव शल करती हुई सी ख़्वाब में