ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
जब तक दिन का सूरज आए उस का खोज लगाते रहना
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आ गई याद शाम ढलते ही
ये सफ़र मालूम का मा'लूम तक है ऐ 'मुनीर'
नील-ए-फ़लक के इस्म में नक़्श-ए-असीर के सबब
तुझ से बिछड़ कर क्या हूँ मैं अब बाहर आ कर देख
मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये
दिन अगर चढ़ता उधर से मैं इधर से जागता
मिलन की रात
पागल-पन
अपने घर को वापस जाओ रो रो कर समझाता है
वहम ये तुझ को अजब है ऐ जमाल-ए-कम-नुमा
बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना
वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया