ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे
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सफ़र में है जो अज़ल से ये वो बला ही न हो
शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ
तू भी जैसे बदल सा जाता है
ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
क़बा-ए-ज़र्द पहन कर वो बज़्म में आया
एक दश्त-ए-ला-मकाँ फैला है मेरे हर तरफ़
साए
मैं और मेरा ख़ुदा
ख़्वाब-ओ-ख़याल-ए-गुल से किधर जाए आदमी
तुझ से बिछड़ कर क्या हूँ मैं अब बाहर आ कर देख
बैठ कर मैं लिख गया हूँ दर्द-ए-दिल का माजरा
दूरी