शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ
फिर मुझे इस शहर में ना-मो'तबर उस ने किया
Faiz Ahmad Faiz
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नाम बेहद थे मगर उन का निशाँ कोई न था
दिल को हाल-ए-क़रार में देखा
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
ख़ूब-सूरत ज़िंदगी को हम ने कैसे गुज़ारा
एक वारिस हमेशा होता है
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
इक मसाफ़त पाँव शल करती हुई सी ख़्वाब में
वतन में वापसी
चमन मैं रंग-ए-बहार उतरा तो मैं ने देखा
कोई हद नहीं है कमाल की
आख़िरी उम्र की बातें
बाज़गश्त