शायद कोई देखने वाला हो जाए हैरान
कमरे की दीवारों पर कोई नक़्श बना कर देख
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ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
ख़्वाहिशें हैं घर से बाहर दूर जाने की बहुत
किसी अकेली शाम की चुप में
वतन में वापसी
सफ़र में है जो अज़ल से ये वो बला ही न हो
हमेशा देर कर देता हूँ
छै रंगीं दरवाज़े
ख़लिश
रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं
उगा सब्ज़ा दर-ओ-दीवार पर आहिस्ता आहिस्ता
हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते