'मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है
कि हरकत तेज़-तर है और सफ़र आहिस्ता आहिस्ता
Jaun Eliya
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डर के किसी से छुप जाता है जैसे साँप ख़ज़ाने में
शब-ए-विसाल में दूरी का ख़्वाब क्यूँ आया
शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़
जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए-आदम को सज़ा
तिलिस्मात
ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे
मौत
चमक ज़र की उसे आख़िर मकान-ए-ख़ाक में लाई
हँसी छुपा भी गया और नज़र मिला भी गया
सपेरा
बेबसी