शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं
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आ गई याद शाम ढलते ही
आख़िरी उम्र की बातें
मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये
अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
वतन में वापसी
लिए फिरा जो मुझे दर-ब-दर ज़माने में
और हैं कितनी मंज़िलें बाक़ी
ख़्वाहिश के ख़्वाब
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी