ख़याल-ए-यकता में ख़्वाब इतने
ख़याल-ए-यकता में ख़्वाब इतने
सवाल तन्हा जवाब इतने
कभी न ख़ूबी का ध्यान आया
हुए जहाँ में ख़राब इतने
हिसाब देना पड़ा हमें भी
कि हम जो थे बे-हिसाब इतने
बस इक नज़र में हज़ार बातें
फिर उस से आगे हिजाब इतने
महक उठे रंग-ए-सुर्ख़ जैसे
खिले चमन में गुलाब इतने
'मुनीर' आए कहाँ से दिल में
नए नए इज़्तिराब इतने
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