घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
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Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
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'मुनीर' अच्छा नहीं लगता ये तेरा
ख़ुश्बू की दीवार के पीछे कैसे कैसे रंग जमे हैं
ये नमाज़-ए-अस्र का वक़्त है
बस एक माह-ए-जुनूँ-ख़ेज़ की ज़िया के सिवा
है 'मुनीर' हैरत-ए-मुस्तक़िल
मैं और मेरा ख़ुदा
इक तेज़ तीर था कि लगा और निकल गया
तिलिस्मात
रंगों की वहशतों का तमाशा थी बाम-ए-शाम
मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर'
हुस्न में गुनाह की ख़्वाहिश
सफ़र में है जो अज़ल से ये वो बला ही न हो