वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में 'मुनीर'
आज कल होता गया और दिन हवा होते गए
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ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ
पी ली तो कुछ पता न चला वो सुरूर था
मिलन की रात
शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
मैं, वो और रात
बेबसी
कल्पना
बैठ कर मैं लिख गया हूँ दर्द-ए-दिल का माजरा
सपेरा
तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो
'मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है
अब मैं उसे याद बना देना चाहता हूँ