तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई
देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने
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बाज़गश्त
छै रंगीं दरवाज़े
एक लड़की
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
ज़वाल-ए-अस्र है कूफ़े में और गदागर हैं
जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल
जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए-आदम को सज़ा
जी ख़ुश हुआ है गिरते मकानों को देख कर
अश्क-ए-रवाँ की नहर है और हम हैं दोस्तो
सारे मंज़र एक जैसे सारी बातें एक सी
ऐसा सफ़र है जिस की कोई इंतिहा नहीं
एक नगर के नक़्श भुला दूँ एक नगर ईजाद करूँ