था 'मुनीर' आग़ाज़ ही से रास्ता अपना ग़लत
इस का अंदाज़ा सफ़र की राइगानी से हुआ
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कुछ दिन के बा'द उस से जुदा हो गए 'मुनीर'
गली के बाहर तमाम मंज़र बदल गए थे
बेचैन बहुत फिरना घबराए हुए रहना
उन से नयन मिला के देखो
'मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है
पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो
कोई हद नहीं है कमाल की
उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए
पागल-पन
कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी 'मुनीर'
डर के किसी से छुप जाता है जैसे साँप ख़ज़ाने में