अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो
कभी कभी जब वक़्त मिले तो अपने घर भी जाते रहना
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक
जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए-आदम को सज़ा
ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगाँ की याद
तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो
ख़ुदा को अपने हम-ज़ाद का इंतिज़ार
दिल ख़ौफ़ में है आलम-ए-फ़ानी को देख कर
अश्क-ए-रवाँ की नहर है और हम हैं दोस्तो
है 'मुनीर' तेरी निगाह में
उन से नयन मिला के देखो
मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर'