अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या
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और हैं कितनी मंज़िलें बाक़ी
दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़
वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया
आमद-ए-शब
शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रात इतनी जा चुकी है और सोना है अभी
ख़ूब-सूरत ज़िंदगी को हम ने कैसे गुज़ारा
सफ़र में है जो अज़ल से ये वो बला ही न हो
जो मुझे भुला देंगे मैं उन्हें भुला दूँगा
थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ
नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
दिल को हाल-ए-क़रार में देखा