ख़ौफ़ हर घर से झाँकता होगा
शहर इक दश्त-ए-बे-सदा होगा
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कोई दो मिनट हिल गई थी ज़मीं
तलब से भी कुछ और ज़ियादा मिला
हवाओं से उलझे शजर रात-भर
हवा के साथ सफ़र इख़्तियार करना था
निडर भी ज़ात में अपनी हूँ ख़ुद से ख़ाइफ़ भी
आवाज़ दे के ख़ुद को बुलाना पड़ा मुझे
जब से मैं ख़ुद-शनास हो गया हूँ
'सैफ़ी' मेरे उजले उजले कोट पर
यूँ तो अक्सर दिल भी धड़के चेहरे पर