कोई दो मिनट हिल गई थी ज़मीं
झुका ख़ाक पर सर मिनारों का था
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जब से मैं ख़ुद-शनास हो गया हूँ
निडर भी ज़ात में अपनी हूँ ख़ुद से ख़ाइफ़ भी
हवाओं से उलझे शजर रात-भर
ख़ौफ़ हर घर से झाँकता होगा
'सैफ़ी' मेरे उजले उजले कोट पर
हवा के साथ सफ़र इख़्तियार करना था
तलब से भी कुछ और ज़ियादा मिला
आवाज़ दे के ख़ुद को बुलाना पड़ा मुझे
यूँ तो अक्सर दिल भी धड़के चेहरे पर