बनने लगे हैं दाग़ सितारे ख़ुशा नसीब
तारीक आसमान शब-ए-इंतिज़ार था
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वहशियों को क़ैद से छूटे हुए मुद्दत हुई
या दिल है मिरा या तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है
सुनता हूँ कि ख़िर्मन से है बिजली को बहुत लाग
तुम ऐसे बे-ख़बर भी शाज़ होंगे इस ज़माने में
वो तग़ाफ़ुल को इलाज-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ समझा
कारोबार-ए-इश्क़ की कसरत कभी ऐसी न थी
कोई अरमाँ तलाश-ए-दोस्त का क्यूँ दिल में रह जाता
देखना है किस में अच्छी शक्ल आती है नज़र
मअनी-तराज़-ए-इश्क़ हर इक बादा-ख़्वार था
कोई मुझ सा मुस्तहिक़्क़-ए-रहम-ओ-ग़म-ख़्वारी नहीं
वो निगाह-ए-शर्मगीं हो या किसी का इंकिसार