तुम ऐसे बे-ख़बर भी शाज़ होंगे इस ज़माने में
कि दिल में रह के अंदाज़ा नहीं है दिल की हालत का
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देखना है किस में अच्छी शक्ल आती है नज़र
वहशियों को क़ैद से छूटे हुए मुद्दत हुई
गुफ़्तुगू की तुम से आदत हो गई है वर्ना में
वो तग़ाफ़ुल को इलाज-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ समझा
तम्हीद थी जुनूँ की गरेबाँ हुआ जो चाक
वो शम्अ नहीं हैं कि हों इक रात के मेहमाँ
कारोबार-ए-इश्क़ की कसरत कभी ऐसी न थी
ज़ब्त से दिल नज़ार रहता है
बनने लगे हैं दाग़ सितारे ख़ुशा नसीब
सुनता हूँ कि ख़िर्मन से है बिजली को बहुत लाग
फ़िक्र-ए-मआल थी न ग़म-ए-रोज़गार था
मअनी-तराज़-ए-इश्क़ हर इक बादा-ख़्वार था