फ़िक्र-ए-मआल थी न ग़म-ए-रोज़गार था
हम थे जहाँ में और तिरा इंतिज़ार था
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
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वहशियों को क़ैद से छूटे हुए मुद्दत हुई
बनने लगे हैं दाग़ सितारे ख़ुशा नसीब
देखना है किस में अच्छी शक्ल आती है नज़र
वो शम्अ नहीं हैं कि हों इक रात के मेहमाँ
कारोबार-ए-इश्क़ की कसरत कभी ऐसी न थी
हाथ रखते ही था हाल-ए-क़ल्ब-ए-मुज़्तर आईना
मअनी-तराज़-ए-इश्क़ हर इक बादा-ख़्वार था
गुफ़्तुगू की तुम से आदत हो गई है वर्ना में
तम्हीद थी जुनूँ की गरेबाँ हुआ जो चाक
कोई अरमाँ तलाश-ए-दोस्त का क्यूँ दिल में रह जाता
पस-ए-तौबा हदीस-ए-मुतरिब-ओ-पैमाना कहते हैं