Ghazals of Mushafi Ghulam Hamdani (page 4)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
नहीं करती असर फ़रियाद मेरी
न वो वादा-ए-सर-ए-राह है न वो दोस्ती न निबाह है
न समझो तुम कि मैं दीवाना वीराने में रहता हूँ
न प्यारे ऊपर ऊपर माल हर सुब्ह-ओ-मसा चक्खो
न पूछ इश्क़ के सदमे उठाए हैं क्या क्या
मुश्ताक़ ही दिल बरसों उस ग़ुंचा-दहन का था
मुँह में जिस के तू शब-ए-वस्ल ज़बाँ देता है
मुँह छुपाओ न तुम नक़ाब में जान
मुख-फाट मुँह पे खाएँगे तलवार हो सो हो
मुझ से इक बात किया कीजिए बस
मुद्दत से हूँ मैं सर-ख़ुश-ए-सहबा-ए-शाएरी
मोहब्बत ने किया क्या न आनें निकालीं
मियाँ सब्र-आज़माई हो चुकी बस
'मीर' क्या चीज़ है 'सौदा' क्या है
मेरी सी तू ने गुल से न गर ऐ सबा कही
मज़हब की मेरे यार अगर जुस्तुजू करें
मौज-ए-निकहत की सबा देख सवारी तय्यार
मसलख़-ए-इश्क़ में खिंचती है ख़ुश-इक़बाल की खाल
माशूक़ा-ए-गुल नक़ाब में है
मख़्लूक़ हूँ या ख़ालिक़-ए-मख़्लूक़-नुमा हूँ
मैं पहरों घर में पड़ा दिल से बात करता हूँ
लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
लिए आदम ने अपने बेटे पाँच
लेने लगे जो चुटकी यक-बार बैठे बैठे
लेखे की याँ बही न ज़र-ओ-माल की किताब
लगते हैं नित जो ख़ूबाँ शरमाने बावले हैं
क्यूँ कि कहिए कि अदा-बंदी है
क्या मैं जाता हूँ सनम छुट तिरे दर और कहीं
क्या खींचे है ख़ुद को दूर अल्लाह
क्या दख़्ल किसी से मरज़-ए-इश्क़ शिफ़ा हो