Ghazals of Mushafi Ghulam Hamdani (page 7)
नाम | मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Mushafi Ghulam Hamdani |
जन्म की तारीख | 1751 |
मौत की तिथि | 1824 |
जन्म स्थान | Amroha |
हर-चंद बहार ओ बाग़ है ये
हर रोज़ हमें घर से सहरा को निकल जाना
हर दम आते हैं भरे दीदा-ए-गिर्यां तुझ बिन
हर चंद अमर्दों में है इक राह का मज़ा
हमें नित असीर-ए-बला चाहता है
है तमन्ना-ए-सैर-ए-बाग़ किसे
है माह कि आफ़्ताब क्या है
हाल-ए-दिल-ए-बे-क़रार है और
गिर्या दिल को न सू-ए-चश्म बहाओ
ग़ुस्से को जाने दीजे न तेवरी चढ़ाइए
ग़ज़ल कहने का किस को ढब रहा है
घर में बाशिंदे तो इक नाज़ में मर जाते हैं
ग़म तिरा दिल में मिरे फिर आग सुलगाने लगा
ग़ैर के घर तू न रह रात को मेहमान कहीं
गरचे ऐ दिल आशिक़-ए-शैदा है तू
गर हम से न हो वो दिल-सिताँ एक
गर हो तमंचा-बंद वो रश्क-ए-फ़िरंगियाँ
गर और भी मिरी तुर्बत पे यार ठहरेगा
गर अब्र घिरा हुआ खड़ा है
फ़हमीदा है जो तुझ को तो फ़हमीद से निकल
एक तो बैठे हो दिल को मिरे खो और सुनो
इक हर्फ़-ए-कुन में जिस ने कौन-ओ-मकाँ बनाया
दूर से मुझ को न मुँह अपना दिखाओ जाओ
दूकान-ए-मय-फ़रोश पे गर आए मोहतसिब
दिल्ली हुई है वीराँ सूने खंडर पड़े हैं
दिलबर की तमन्ना-ए-बर-ओ-दोश में मर जाए
दिल सीने में बेताब है दिलदार किधर है
दिल में मुर्ग़ान-ए-चमन के तो गुमाँ और ही है
दिल में है उस के मुद्दई का इश्क़
दिल को ये इज़्तिरार कैसा है