आदमी से आदमी की जब न हाजत हो रवा
क्यूँ ख़ुदा ही की करे इतनी न फिर याद आदमी
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(290) Peoples Rate This
गो मैं बुतों में उम्र को काटा तो क्या हुआ
और सरगर्म किया तेरी कशिश ने मुझ को
मैं ने किस चश्म के अफ़्साने को आग़ाज़ किया
शहर में मुझ से भड़कता था तसव्वुर तेरा
ख़ाना-ए-दिल पे बिना अर्श की तू रख तो सही
दर तलक आ के टुक आवाज़ सुना जाओ जी
बंद भी आँखों को ज़री कीजिए
पीछे पड़ी हैं दिल के बे-तरह मेरी आँखें
तिरे मुँह छुपाते ही फिर मुझे ख़बर अपनी कुछ न ज़री रही
ज़ालिम ख़ुदा के वास्ते बैठा तो रह ज़रा
उस के कूचे की तरफ़ था शब जो दंगा आग का
जब मैं ने कहा आँखें छुपा खोल दिया मुँह