तीखे तो हो प सच कहो उस वक़्त क्या करो
तुम को गले लगा ले अगर प्यार से कोई
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बस-कि तेज़ाब से कुछ कम भी न था वो दम-ए-क़त्ल
तू मेरे दर्द से आगाह यूँ न होवेगा
मुख-फाट मुँह पे खाएँगे तलवार हो सो हो
क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
अब मुझ को गले लगाओ साहिब
जब चाहे तू जला दे मिरे मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ
इतना जो हम से रहते हो बेगाना मेरी जान
इस क़दर भी तो मिरी जान न तरसाया कर
दर्द-ओ-ग़म को भी है नसीबा शर्त
उट्ठा गया फ़लक पे गिरा ख़ाक में मिला
बस बहुत ज़ब्त-ए-ग़म-ए-इश्क़ किया
आलम इस कार-ए-सन'अ का है तुर्फ़ा कि याँ