तितलियाँ उड़ती हैं और उन को पकड़ने वाले
सई-ए-नाकाम में अपनों से बिछड़ जाते हैं
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
हार जीत
''ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते''
सियाह लहू
रोकता है ग़म-ए-इज़हार से पिंदार मुझे
इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
यूँ तो वो हर किसी से मिलती है
गिर्या तो अक्सर रहा पैहम रहा
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है
तन्हा
लोगों की मलामत भी है ख़ुद दर्द-सरी भी
सीने में ख़िज़ाँ आँखों में बरसात रही है