रूह के इस वीराने में तेरी याद ही सब कुछ थी
आज तो वो भी यूँ गुज़री जैसे ग़रीबों का त्यौहार
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मुद्दतों कोर-निगाही दिल की
कराहते हुए दिल
रात सुनसान है
वो अहद अहद ही क्या है जिसे निभाओ भी
नावक-ए-ज़ुल्म उठा दशना-ए-अंदोह सँभाल
क़दम क़दम पे तमन्ना-ए-इल्तिफ़ात तो देख
हुई ईजाद नई तर्ज़-ए-ख़ुशामद कि नहीं
ग़म-ए-दौराँ ने भी सीखे ग़म-ए-जानाँ के चलन
दोराहा
आदमी
फ़नकार ख़ुद न थी मिरे फ़न की शरीक थी
दिल के रिश्ते अजीब रिश्ते हैं