हरा समुंदर
गोपी-चंद्र
दुनिया भर डिबिया के अंदर
चीन से बातें
'मद्दू' से 'नसरीन' से बातें
गर्दन में
लटकी रहती है
कानों से लिपटी रहती है
रोमिंग अच्छी
सर्च बहुत है
लेकिन इस में ख़र्च बहुत है
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Wasi Shah
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तूफ़ान-ए-बला से जो मैं बच कर गुज़र आया
शिकस्त खा चुके हैं हम मगर अज़ीज़ फ़ातेहो
वो एक पल का साथ ब-वक़्त-ए-नमाज़ है
बसारतों पे भँवर इंकिशाफ़ करता है
बने हुए हैं फ़सील-ए-नज़र दर-ओ-दीवार
धरती पर क्या कम है
लाइक़-ए-दीद वो नज़ारा था
बाब-ए-तिलिस्म-ए-होश-रुबा मिल गया मुझे
दरिया-ए-शब के पार उतारे मुझे कोई
इक मसरफ़-ए-औक़ात-ए-शबीना निकल आया
क्या वस्ल की साअत को तरसने के लिए था
लक्ष्मण-रेखा