Ghazals of Muztar Khairabadi (page 2)

Ghazals of Muztar Khairabadi (page 2)
नाममुज़्तर ख़ैराबादी
अंग्रेज़ी नामMuztar Khairabadi
जन्म की तारीख1865
मौत की तिथि1927

क्या कहूँ हसरत-ए-दीदार ने क्या क्या खींचा

किसी के संग-ए-दर से अपनी मय्यत ले के उट्ठेंगे

किसी बुत की अदा ने मार डाला

कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था

जुनूँ के जोश में इंसान रुस्वा हो ही जाता है

जुदाई मुझ को मारे डालती है

जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे

जफ़ा से वफ़ा मुस्तरद हो गई

जब कहा तीर तिरी आँख ने अक्सर मारा

जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम

जब कहा मैं हूँ तिरे इश्क़ में बदनाम कि तू

जान ये कह के बुत-ए-होश-रुबा ने ले ली

इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली

इस बात का मलाल नहीं है कि दिल गया

इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता

हम ने पाई लज़्ज़त-ए-दीदार लेकिन दूर से

हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे

हम उम्र के साथ हैं सफ़र में

हिज्र में हो गया विसाल का क्या

हौसला इम्तिहान से निकला

ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है

ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है

गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो

फ़स्ल-ए-गुल भी तरस के काटी है

इक पर्दा-नशीं की आरज़ू है

इक नक़्श-ए-ख़याल रू-ब-रू है

दूर क्यूँ जाऊँ यहीं जल्वा-नुमा बैठा है

दुआ से कुछ न हुआ इल्तिजा से कुछ न हुआ

दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए

दिल ले के हसीनों ने ये दस्तूर निकाला

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