हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे
जब है बे-ग़ौरी तो ये भी ग़ौर कोई क्यूँ करे
इल्तिजा-ए-वस्ल पर महशर में वो कहने लगे
अपने वा'दे की वफ़ा फ़िल-फ़ौर कोई क्यूँ करे
बात किस की बात मेरी कौन 'मुज़्तर' ध्यान दे
हाल किस का हाल मेरा ग़ौर कोई क्यूँ करे
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(259) Peoples Rate This
मिरे दल ने झटके उठाए हैं कितने ये तुम अपनी ज़ुल्फ़ों के बालों से पूछो
उस का भी एक वक़्त है आने दो मौत को
मेरी हस्ती से तो अच्छी हैं हवाएँ यारब
नज़र के सामने का'बा भी है कलीसा भी
नहीं हूँ मैं तो तिरी बंदगी के क्या मा'नी
दुआ से कुछ न हुआ इल्तिजा से कुछ न हुआ
इन बुतों की ही मोहब्बत से ख़ुदा मिलता है
जिए जाते हैं पस्ती में तिरे सारे जहाँ वाले
इक नक़्श-ए-ख़याल रू-ब-रू है
हसरतों को कोई कहाँ रक्खे
याद करना ही हम को याद रहा
जो पूछा दिल हमारा क्यूँ लिया तो नाज़ से बोले