इन बुतों की ही मोहब्बत से ख़ुदा मिलता है
काफ़िरों को जो न चाहे वो मुसलमान नहीं
Habib Jalib
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Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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Rahat Indori
Parveen Shakir
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Wasi Shah
Javed Akhtar
Gulzar
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उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
इसी को पी के होती है शिफ़ा बीमार-ए-उल्फ़त को
जा के अब नार-ए-जहन्नम की ख़बर ले ज़ाहिद
क्या असर ख़ाक था मजनूँ के फटे कपड़ों में
जान देना नहीं किसे मंज़ूर
नहीं मंज़ूर जब मिलना तो वा'दे की ज़रूरत क्या
गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो
हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्ती
दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए
ख़ाल-ओ-आरिज़ का तसव्वुर है हमारे दिल में