जा के अब नार-ए-जहन्नम की ख़बर ले ज़ाहिद
नद्दियाँ बह गईं अश्कों की गुनहगारों में
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तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए
अब कौन फिरे कू-ए-बुत-ए-दुश्मन-ए-दीं से
कुछ न पूछो कि क्यूँ गया काबे
वहाँ जा कर किए हैं मैं ने सज्दे अपनी हस्ती को
आप से मुझ को मोहब्बत जो नहीं है न सही
मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये
जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम
आप क्यूँ बैठे हैं ग़ुस्से में मिरी जान भरे
ये नक़्शा है कि मुँह तकने लगा है मुद्दआ' मेरा
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
चाहत की नज़र आप से डाली भी गई है