इसी को पी के होती है शिफ़ा बीमार-ए-उल्फ़त को
दवा क़ातिल तिरे तलवार के पानी को कहते हैं
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(312) Peoples Rate This
उन का इक पतला सा ख़ंजर उन का इक नाज़ुक सा हाथ
जब कहा मैं हूँ तिरे इश्क़ में बदनाम कि तू
दिल काम का नहीं तो न लो जान नज़्र है
वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं
इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली
बैठे हुए हैं हम ख़ुद आँखों में धूल डाले
मेरा रंग रूप बिगड़ गया मिरा यार मुझ से बिछड़ गया
दम दे दिया है किस रुख़-ए-रौशन की याद में
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
हसरतों को कोई कहाँ रक्खे
मुख़ालिफ़ है सबा-ए-नामा-बर कुछ और कहती है