दम दे दिया है किस रुख़-ए-रौशन की याद में
मरने के बा'द भी मिरे चेहरे पे नूर था
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मेरी हस्ती से तो अच्छी हैं हवाएँ यारब
तुम अगर चाहो तो मिट्टी से अभी पैदा हों फूल
अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
इन बुतों की ही मोहब्बत से ख़ुदा मिलता है
हसरतों को कोई कहाँ रक्खे
ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है
ख़ूब इस दिल पे तिरी आँख ने डोरे डाले
मोहब्बत का असर फिर देखना मरने तो दो मुझ को
हम से अच्छा नहीं मिलने का अगर तुम चाहो
वो पास आने न पाए कि आई मौत की नींद
अब इस से बढ़ के क्या नाकामियाँ होंगी मुक़द्दर में
नमक-पाश ज़ख़्म-ए-जिगर अब तो आ जा