अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
अव्वल तो मुझे गाढ़ा ऊपर से दबाते हैं
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वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी
नमक-पाश ज़ख़्म-ए-जिगर अब तो आ जा
हमारे मय-कदे में ख़ैर से हर चीज़ रहती है
निछावर बुत-कदे पर दिल करूँ का'बा तो कोसों है
मेरी हस्ती से तो अच्छी हैं हवाएँ यारब
कहीं जो बुलबुल ने देख पाया तो मेरी उस की नहीं बनेगी
एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ
जिए जाते हैं पस्ती में तिरे सारे जहाँ वाले
उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिन
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
किसी का जल्वा-ए-रंगीं ये कहता है इन्हें पूजो
साक़ी मिरा खिंचा था तो मैं ने मना लिया