कहीं जो बुलबुल ने देख पाया तो मेरी उस की नहीं बनेगी
चमन में जाने को रोज़ जाओ मगर गुलों से हँसी न करना
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ऐश के रंग मलालों से दबे जाते हैं
कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है
हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे
सुब्ह तक कौन जियेगा शब-ए-तन्हाई में
तरीक़ याद है पहले से दिल लगाने का
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
मदहोश ही रहा मैं जहान-ए-ख़राब में
वो मज़ाक़-ए-इश्क़ ही क्या कि जो एक ही तरफ़ हो
माइल-ए-सोहबत-ए-अग़्यार तो हम हैं तुम कौन
रुख़ किसी का नज़र नहीं आता
सहें कब तक जफ़ाएँ बेवफ़ाई देखने वाले