मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं
मज़ा आ जाए ऐसे में अगर सन ले ख़ुदा मेरी
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जलेगा दिल तुम्हें बज़्म-ए-अदू में देख कर मेरा
न रो इतना पराए वास्ते ऐ दीदा-ए-गिर्यां
क्या कहूँ हसरत-ए-दीदार ने क्या क्या खींचा
ज़ुल्फ़ का हाल तक कभी न सुना
ईसा से दवा-ए-मरज़-ए-इश्क़ न होगी
हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
इन बुतों की ही मोहब्बत से ख़ुदा मिलता है
जितने बुत हैं मैं सब पे मरता हूँ
अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
नमक-पाश ज़ख़्म-ए-जिगर अब तो आ जा
जिए जाते हैं पस्ती में तिरे सारे जहाँ वाले
दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए