मेरी हस्ती से तो अच्छी हैं हवाएँ यारब
कि जो आज़ाद फिरा करती हैं मैदानों में
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पड़ गए ज़ुल्फ़ों के फंदे और भी
बिछड़ना भी तुम्हारा जीते-जी की मौत है गोया
मेरे अश्कों की रवानी को रवानी तो कहो
आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
अपने दिल को तिरी आँखों पे फ़िदा करता हूँ
आरज़ू दिल में बनाए हुए घर है भी तो क्या
जान देना नहीं किसे मंज़ूर
जुदाई मुझ को मारे डालती है
वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में