असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(376) Peoples Rate This
मेरे अश्कों की रवानी को रवानी तो कहो
इस से पहले मैं कभी आबाद घर बस्ती में था
वो कहते हैं ये सारी बेवफ़ाई है मोहब्बत की
ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना
इक हम हैं कि हम ने तुम्हें माशूक़ बनाया
जब कहा तीर तिरी आँख ने अक्सर मारा
तेरे मूए-ए-मिज़ा खटकते हैं
मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा मुझे सुन के कोई करेगा क्या
कहीं जो बुलबुल ने देख पाया तो मेरी उस की नहीं बनेगी
तू मुझे किस के बनाने को मिटा बैठा है
तुम्हारी जल्वा-गाह-ए-नाज़ में अंधेर ही कब था
मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये