इस से पहले मैं कभी आबाद घर बस्ती में था
आज 'मुज़्तर' एक उजड़ा झोंपड़ा जंगल में हूँ
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(353) Peoples Rate This
हाल उस ने हमारा पूछा है
अपनी महफ़िल में रक़ीबों को बुलाया उस ने
किसी के संग-ए-दर से अपनी मय्यत ले के उट्ठेंगे
कोई अच्छा नज़र आ जाए तो इक बात भी है
मोहब्बत क़द्र-दाँ होती तो फिर काहे का रोना था
किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
नमक-पाश ज़ख़्म-ए-जिगर अब तो आ जा
कूचा-ए-यार से यारब न उठाना हम को
कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
साक़ी तिरी नज़र तो क़यामत सी ढा गई
बिछड़ना भी तुम्हारा जीते-जी की मौत है गोया