ईसा कभी न जाते लेकिन तुम्हारे ग़म में
वो भी तो मर रहे हैं जो आसमान पर हैं
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तेरी रंगत बहार से निकली
हिज्र में हो गया विसाल का क्या
ईमान साथ जाएगा क्यूँकर ख़ुदा के घर
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
लुत्फ़-ए-क़ुर्बत है मय-परस्ती में
जुदाई मुझ को मारे डालती है
वो कहते हैं ये सारी बेवफ़ाई है मोहब्बत की
उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
ऐश के रंग मलालों से दबे जाते हैं
आप क्यूँ बैठे हैं ग़ुस्से में मिरी जान भरे
वो पहली सब वफ़ाएँ क्या हुईं अब ये जफ़ा कैसी
मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत