वो कहते हैं ये सारी बेवफ़ाई है मोहब्बत की
न 'मुज़्तर' बे-वफ़ा मैं हूँ न 'मुज़्तर' बे-वफ़ा तुम हो
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कैसे दिल लगता हरम में दौर-ए-पैमाना न था
बाज़ू पे रख के सर जो वो कल रात सो गया
मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी
ऐ इश्क़ कहीं ले चल ये दैर-ओ-हरम छूटें
ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना
दिल ले के हसीनों ने ये दस्तूर निकाला
दिल का मोआ'मला जो सुपुर्द-ए-नज़र हुआ
हसरतों को कोई कहाँ रक्खे
मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये
दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए
नहीं मंज़ूर जब मिलना तो वा'दे की ज़रूरत क्या