मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये
जिस को मैं प्यार से देखूँगा वही तू होगा
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असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
अब इस से बढ़ के क्या नाकामियाँ होंगी मुक़द्दर में
जा के अब नार-ए-जहन्नम की ख़बर ले ज़ाहिद
मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है
सब शरीक-ए-सदमा-ओ-आज़ार कुछ यूँही से हैं
ईसा कभी न जाते लेकिन तुम्हारे ग़म में
ये तो मुमकिन नहीं मोहब्बत में
मेरा दिल-ए-'मुज़्तर' बुत-ए-काफ़िर से लगा है
वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
दूर क्यूँ जाऊँ यहीं जल्वा-नुमा बैठा है
वक़्त-ए-आख़िर क़ज़ा से बिगड़ेगी
किसी बुत की अदा ने मार डाला