ये तो मुमकिन नहीं मोहब्बत में
आप जो कुछ कहें वो हम न करें
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मिरा रोना हँसी-ठट्ठा नहीं है
वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं
आँखें न चुराओ दिल में रह कर
हमारे मय-कदे में ख़ैर से हर चीज़ रहती है
हम उम्र के साथ हैं सफ़र में
दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए
तड़प ही तड़प रह गई सिर्फ़ बाक़ी
अपनी महफ़िल में रक़ीबों को बुलाया उस ने
माइल-ए-सोहबत-ए-अग़्यार तो हम हैं तुम कौन
इन बुतों की ही मोहब्बत से ख़ुदा मिलता है
उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे
निगाहों में फिरती है आठों-पहर